नई दिल्ली, 31 मई . राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह अरुण कुमार ने शनिवार को कहा कि आज जब वैश्विक प्रभाव बढ़ रहे हैं, आत्मबोध के बिना आत्मनिर्भरता संभव नहीं है. पंडित दीनदयाल का दर्शन इस दिशा में प्रकाश स्तंभ बन सकता है. एकात्म मानव दर्शन भारतीय चिंतन के आधार पर राष्ट्र निर्माण के लिए महत्वपूर्ण विचारधारा है.
सह सरकार्यवाह अरुण कुमार ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय एकात्म मानव दर्शन व्याख्यानों की 60वीं वर्षगांठ पर नई दिल्ली के एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में आयोजित राष्ट्रीय स्मृति सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित किया. अरुण कुमार ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन पर चर्चा करते हुए कहा कि एकात्म मानव दर्शन भारतीय चिंतन के आधार पर राजनीतिक क्षेत्र में कार्य करने के लिए एक महत्वपूर्ण विचारधारा है. यह व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की ओर ले जाती है और समाज में परिवर्तन लाने के लिए आवश्यक है. पंडित दीनदयाल ने भारतीय चिंतन के आलोक में ‘एकात्म मानवदर्शन’ की कल्पना की. यह दर्शन व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को एक इकाई मानता है. उनका मानना था कि आत्मबोध ही राष्ट्रबोध की पहली सीढ़ी है. अब समय आ गया है जब इस विचार को समाज के हर क्षेत्र में उतारना होगा.
कुमार ने आत्मविस्मृति को आज़ादी के बाद की सबसे बड़ी समस्या बताया. उन्होंने कहा कि जब कोई समाज अपनी पहचान और जड़ों को भूल जाता है, तो आत्मग्लानि और आत्महीनता घर कर लेती है. इसी आत्मविस्मृति से उबरने के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने ‘एकात्म मानवदर्शन’ का विचार दिया. उन्होंने कहा कि यह कोई नया विचार नहीं था, बल्कि भारतीय परंपरा की पुरानी नींव पर नया निर्माण करने की दिशा में एक प्रयास था. यह दर्शन बताता है कि आधुनिकता को अपनाते हुए भी अपने मूल को नहीं छोड़ा जा सकता. दीनदयाल का विचार था कि आत्मबोध के बिना राष्ट्रबोध संभव नहीं, और बिना राष्ट्रबोध के भारत का उत्थान अधूरा रहेगा.
अरुण कुमार ने कहा कि हमें पुरानी नींव पर नया निर्माण करना होगा. हमें अपने वैशिष्ट्य के आधार पर वर्तमान में जीना होगा और युगानुकूल व्यवस्थाओं का निर्माण करना होगा. पुराना सबकुछ अच्छा है और आज का सबकुछ खराब है. हमारे पास ही सबकुछ श्रेष्ठ है दूसरों के पास हमें देने के लिए कुछ नहीं है- इस अहंकार में हमें नहीं रहना है.
अरुण कुमार ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद देश ने ‘स्व’ की भावना खो दी. जब कोई समाज यह भूल जाता है कि वह कौन है, तब वह दूसरों के विचारों और आदर्शों का अनुकरण करने लगता है. यह स्थिति भारत में भी देखी गई. विदेशी विचारधाराओं ने यहां की जड़ों को कमजोर किया. लोग पूंजीवाद, समाजवाद की बात करते रहे लेकिन अपने मूल विचार की ओर नहीं लौटे. अरुण कुमार ने कहा कि हर राष्ट्र का अपना एक वैशिष्ट्य होता है और भारत का वैशिष्ट्य धर्म है. धर्म का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं है बल्कि यह जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करता है. इसी पृष्ठभूमि में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने आत्मविस्मृति के विरुद्ध वैचारिक लड़ाई शुरू की. उनका उद्देश्य सांप्रदायिकता नहीं बल्कि पहचान की पुनर्स्थापना था. जब तक समाज अपनी जड़ों को नहीं पहचानेगा, तब तक सशक्त राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं होगा.
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/ सुशील कुमार
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