Next Story
Newszop

क्या पाकिस्तान अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार लेगा? शिमला समझौता रद्द करने से भारी नुकसान होगा

Send Push

क्या है शिमला समझौता: कश्मीर घाटी के पहलगाम में आतंकवादियों ने हिंदू पर्यटकों को निशाना बनाकर क्रूर हमला किया। पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा किये गए इस हमले में कई लोगों की जान चली गई है। ऐसे में अब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाया है। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति के साथ बैठक की, जिसमें बड़े फैसले लिए गए। भारत ने अब पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है तथा पाकिस्तानी नागरिकों के लिए सार्क वीज़ा छूट योजना (एसवीईएस) को रद्द कर दिया है। इसके अतिरिक्त, नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग के रक्षा, नौसेना और वायु सेना सलाहकारों को ‘अवांछित व्यक्ति’ घोषित कर दिया गया है। इस कदम से परेशान होकर अब पाकिस्तान में शिमला समझौते को रद्द करने की चर्चाएं जोर पकड़ रही हैं।

पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने गुरुवार सुबह राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (एनएससी) की आपात बैठक बुलाई है, जिसमें शिमला समझौते को रद्द करने पर विचार किया जा सकता है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री इशाक डार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा, “यह बैठक भारत के हालिया बयानों और कार्यों का जवाब देने के लिए बुलाई गई है।” पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक टीवी चैनल पर दावा किया कि पहलगाम हमले का पाकिस्तान से कोई संबंध नहीं है और भारत के कई हिस्सों में हो रही हिंसा “घरेलू उग्रवाद” का परिणाम है।

एक पाकिस्तानी अखबार ने लिखा है कि अगर सिंधु नदी के पानी तक पाकिस्तान की पहुंच को खतरा हुआ तो अन्य द्विपक्षीय समझौतों की नींव भी कमजोर हो सकती है। इसके जवाब में, पाकिस्तान नियंत्रण रेखा (एल.ओ.सी.) के साथ-साथ अन्य युद्धविराम व्यवस्थाओं को स्थापित करने वाले शिमला समझौते को रद्द करने पर विचार कर सकता है। पाकिस्तानी मीडिया में इस मुद्दे पर खूब चर्चा हो रही है।

शिमला समझौता क्या है?

शिमला समझौता 28 जून से 2 जुलाई 1972 तक हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में आयोजित कई वार्ताओं का परिणाम था। इस पर भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे। यह समझौता 1971 के युद्ध के बाद तनाव कम करने और दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिए किया गया था। युद्ध में भारत ने न केवल पाकिस्तान को सैन्य रूप से पराजित किया बल्कि पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) को भी आजाद कराया और पाकिस्तान को दो भागों में विभाजित कर दिया। इसके अतिरिक्त, भारत ने 93,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों को युद्ध बंदी बना लिया तथा लगभग 5,000 वर्ग मील पाकिस्तानी भूभाग पर कब्जा कर लिया। शिमला समझौता एक शांति संधि से कहीं अधिक है, यह दोनों देशों के बीच भावी संबंधों के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। इसका मुख्य उद्देश्य युद्ध के बाद उत्पन्न होने वाले मुद्दों, जैसे युद्धबंदियों की वापसी, कब्जे वाले क्षेत्रों की अदला-बदली और कश्मीर विवाद, का समाधान करना है।

द्विपक्षीय निपटान का सिद्धांत

इस समझौते का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान यह था कि भारत और पाकिस्तान अपने सभी विवादों, विशेषकर जम्मू-कश्मीर से संबंधित विवादों को द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से सुलझाएंगे। यह इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाए जाने से रोकने के लिए एक रणनीतिक कदम था।

 

 

नियंत्रण रेखा (एलओसी) का सम्मान

समझौते में यह शर्त रखी गई थी कि दोनों देश 17 दिसंबर 1971 को युद्ध विराम के बाद स्थापित नियंत्रण रेखा का सम्मान करेंगे। इसे वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलओसी) के रूप में मान्यता दी गई और दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि वे इसे एकतरफा रूप से बदलने का प्रयास नहीं करेंगे।

क्षेत्रों की वापसी और युद्धबंदियों का आदान-प्रदान

भारत ने युद्ध में कब्जा किये गये पश्चिमी पाकिस्तान के क्षेत्रों को वापस करने तथा 90,000 पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा करने पर सहमति व्यक्त की। बदले में, पाकिस्तान ने बांग्लादेश को मान्यता देने और द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने का वादा किया।

शांति और सहयोग को बढ़ावा देना

दोनों देशों ने एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करने, बल प्रयोग से बचने तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों का पालन करने की प्रतिज्ञा की। व्यापार, संचार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने पर सहमति हुई।

परमाणु स्थिरता

इस समझौते में परमाणु युद्ध के जोखिम को कम करने और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।

शिमला समझौते का प्रभाव

शिमला समझौता कश्मीर मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंचों से हटाकर द्विपक्षीय स्तर पर लाने में भारत की महत्वपूर्ण सफलता थी। इसके साथ ही भारत ने यह सुनिश्चित किया कि कोई भी तीसरा पक्ष, जैसे संयुक्त राष्ट्र या कोई अन्य देश, कश्मीर में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

इस समझौते ने तत्काल सैन्य तनाव को कम करने और दक्षिण एशिया में स्थिरता को बढ़ावा देने में योगदान दिया। युद्ध विराम व्यवस्था और नियंत्रण रेखा की स्थापना से अनियोजित सैन्य वृद्धि रुक गई।

1971 के युद्ध और शिमला समझौते ने भारत को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया। इंदिरा गांधी के दृढ़ नेतृत्व में भारत वैश्विक मंच पर एक गंभीर खिलाड़ी के रूप में उभरा।

पाकिस्तान ने अपने युद्धबंदियों और क्षेत्रों को वापस तो हासिल कर लिया, लेकिन वह कश्मीर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में असफल रहा। इसके अतिरिक्त, नियंत्रण रेखा पर संघर्ष और आतंकवाद को प्रोत्साहन जैसे समझौते के प्रावधानों के बार-बार उल्लंघन से इसकी विश्वसनीयता कम हुई।

तो इससे केवल भारत को ही लाभ होगा।

पाकिस्तानी मीडिया में चर्चा है कि पाकिस्तान शिमला समझौते को रद्द करने पर विचार कर सकता है। यदि ऐसा हुआ तो पाकिस्तान के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे।

कश्मीर मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव से मुक्ति

शिमला समझौता कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा बनाये रखने का आधार है। यदि पाकिस्तान इसे रद्द कर देता है, तो भारत यह तर्क दे सकता है कि पाकिस्तान ने स्वयं ही इस समझौते को अमान्य कर दिया है, जिससे भारत को कश्मीर पर अपनी नीतियों को और अधिक मजबूत करने की स्वतंत्रता मिल जाएगी। भारत यह दावा कर सकता है कि कश्मीर हमारा आंतरिक मामला है और हम बिना किसी बाहरी दबाव के इस पर निर्णय ले सकते हैं।

राजनयिक अलगाव

समझौते को रद्द करने से पाकिस्तान की कूटनीतिक विश्वसनीयता और कमजोर हो जाएगी। वैश्विक समुदाय इसे एक गैर-जिम्मेदाराना कदम मानेगा, जिससे पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ सकता है। भारत इस स्थिति का लाभ उठाकर पाकिस्तान को आतंकवाद के प्रायोजक के रूप में उजागर कर सकता है।

सैन्य और सामरिक स्वतंत्रता

शिमला समझौते में नियंत्रण रेखा को स्थायी सीमा के रूप में मान्यता दी गई। यदि इसे रद्द कर दिया जाता है, तो भारत इसे एक अवसर के रूप में देख सकता है और नियंत्रण रेखा के पार, विशेष रूप से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में अधिक आक्रामक रणनीति अपना सकता है। भारत पीओके में विकास परियोजनाओं को बढ़ावा दे सकता है या वहां के लोगों के साथ सीधा संपर्क स्थापित कर सकता है।

चीन के साथ संबंधों पर प्रभाव

शिमला समझौते को रद्द करने से भारत को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) जैसी परियोजनाओं पर और अधिक सवाल उठाने का अवसर मिलेगा, क्योंकि यह पीओके से होकर गुजरता है। भारत इसे अपनी क्षेत्रीय अखंडता के विरुद्ध कदम के रूप में प्रस्तुत कर सकता है।

 

पाकिस्तान की संभावित बर्बादी

शिमला समझौते को रद्द करना पाकिस्तान के लिए आत्मघाती कदम होगा। यह समझौता अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के प्रति पाकिस्तान की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। इसके रद्द होने से पाकिस्तान की विश्वसनीयता पूरी तरह नष्ट हो सकती है तथा वैश्विक मंचों पर वह और भी अलग-थलग पड़ सकता है।

पाकिस्तान ने कई बार संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठाने की कोशिश की है, लेकिन शिमला समझौते के कारण उसे सफलता नहीं मिल पाई है। यदि समझौता रद्द भी हो जाता है, तो भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला मान सकता है, क्योंकि वैश्विक शक्तियों ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद भारत के रुख का समर्थन किया है। यदि समझौता रद्द हो जाता है, तो भारत नियंत्रण रेखा पर अधिक आक्रामक रुख अपना सकता है, जिससे पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक रूप से भारी नुकसान हो सकता है। पाकिस्तान की पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था इस अतिरिक्त दबाव को झेलने में सक्षम नहीं होगी।

शिमला समझौते को निरस्त करने से आतंकवाद को प्रायोजित करने में पाकिस्तान का रिकार्ड और उजागर हो जाएगा। इससे FATF जैसे संगठनों द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सकती है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था और अधिक प्रभावित हो सकती है। पाकिस्तान पहले से ही राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। समझौते को रद्द करने से भारत के साथ तनाव बढ़ेगा, जिसका असर पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा पर पड़ेगा। बलूचिस्तान और अन्य क्षेत्रों में अलगाववादी आंदोलन तेज हो सकते हैं।

पाकिस्तान में इसे रद्द करने की मांग क्यों हो रही है?

पाकिस्तानी मीडिया और विश्लेषकों का दावा है कि भारत के हालिया कदम, विशेषकर सिंधु जल संधि को निलंबित करना, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और कृषि के लिए एक बड़ा झटका है। पाकिस्तान की 80% कृषि सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि शिमला समझौते को रद्द करना भारत पर दबाव डालने की एक रणनीति हो सकती है, लेकिन इससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ सकता है।

भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि पहलगाम हमले के पीछे पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ है। विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘आतंकवाद के प्रति भारत की जीरो टॉलरेंस नीति है। हमले के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।’ भारत ने 24 अप्रैल को एक सर्वदलीय बैठक बुलाने का भी फैसला किया है, जिसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में आगे की रणनीति पर चर्चा की जाएगी।

The post first appeared on .

Loving Newspoint? Download the app now