नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला लिया है। संविधान बेंच ने यह निर्णय दिया कि कोई जूडिशियल ऑफिसर जिसके पास न्यायिक सेवा और वकील के रूप में कुल सात वर्षों का संयुक्त अनुभव है, उसे जिला जज के रूप में सीधी नियुक्ति के लिए आवेदन करने का अधिकार होगा। पात्रता की गणना आवेदन की तारीख के आधार पर की जाएगी।
इतनी होनी चाहिए उम्मीदवार की उम्र
समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि कि सेवा में कार्यरत उम्मीदवारों (in-service candidates) की न्यूनतम आयु 35 वर्ष होनी चाहिए, ताकि उन्हें जिला जज की सीधी भर्ती प्रक्रिया में शामिल किया जा सके।
सरकारों को बनाने होंगे नियम
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि राज्य सरकारों को ऐसे नियम बनाने होंगे जिनमें यह प्रावधान हो कि सेवा में कार्यरत न्यायिक अधिकारी तभी पात्र माने जाएंगे जब उनके पास न्यायिक अधिकारी और अधिवक्ता के रूप में कुल सात वर्षों का अनुभव हो।
इस फैसले को किया गया निरस्त
इस फैसले के साथ पहले के मामले में दिया गया निर्णय, जिसमें कहा गया था कि सेवा में कार्यरत उम्मीदवार जिला जज की सीधी भर्ती में आवेदन नहीं कर सकते, अब निरस्त कर दिया गया है। यह फैसला आज से लागू होगा और पहले से शुरू की गई प्रक्रियाओं पर लागू नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश, अरविंद कुमार, एस.सी. शर्मा और के. विनोद चंद्रन की बेंच ने यह निर्णय सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट के सामने कई सवाल थे जिस पर अपना फैसला दिया
अदालत ने यह भी कहा कि पहले के दो मामले जिनमें शंकर नारायणन और धीरज मोर मामलों में जो दृष्टिकोण अपनाया गया था, वह सही कानून की व्याख्या नहीं थी। अदालत ने उच्च न्यायालयों और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे इस निर्णय के अनुरूप तीन महीने के भीतर अपने भर्ती नियमों में संशोधन करें।
संबंधित अनुच्छेद को पढ़ना चाहिए
अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 233 को संपूर्ण रूप से पढ़ा जाना चाहिए, न कि उसके उप-अनुच्छेदों को अलग-अलग। साथ ही यह भी कहा गया कि अनुच्छेद 233 की उद्देश्यपरक व्याख्या (purposive interpretation) की जानी चाहिए, न कि शाब्दिक या तकनीकी दृष्टिकोण से। वह व्याख्या अपनाई जानी चाहिए जो प्रशासनिक दक्षता बढ़ाए और योग्य उम्मीदवारों को आकर्षित करे।
इस आदेश के बाद गठित की गई बेंच
आपको बता दें कि यह संवैधानिक पीठ उन तीन-जजों की पीठ के आदेश के बाद गठित की गई थी, जिसमें 12 अगस्त को चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया ने मामले को बड़ी पीठ को भेजने का आदेश दिया था। पीठ ने जिन चार मुख्य प्रश्नों पर विचार किया वह इस प्रकार है।
इतनी होनी चाहिए उम्मीदवार की उम्र
समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि कि सेवा में कार्यरत उम्मीदवारों (in-service candidates) की न्यूनतम आयु 35 वर्ष होनी चाहिए, ताकि उन्हें जिला जज की सीधी भर्ती प्रक्रिया में शामिल किया जा सके।
सरकारों को बनाने होंगे नियम
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि राज्य सरकारों को ऐसे नियम बनाने होंगे जिनमें यह प्रावधान हो कि सेवा में कार्यरत न्यायिक अधिकारी तभी पात्र माने जाएंगे जब उनके पास न्यायिक अधिकारी और अधिवक्ता के रूप में कुल सात वर्षों का अनुभव हो।
इस फैसले को किया गया निरस्त
इस फैसले के साथ पहले के मामले में दिया गया निर्णय, जिसमें कहा गया था कि सेवा में कार्यरत उम्मीदवार जिला जज की सीधी भर्ती में आवेदन नहीं कर सकते, अब निरस्त कर दिया गया है। यह फैसला आज से लागू होगा और पहले से शुरू की गई प्रक्रियाओं पर लागू नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश, अरविंद कुमार, एस.सी. शर्मा और के. विनोद चंद्रन की बेंच ने यह निर्णय सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट के सामने कई सवाल थे जिस पर अपना फैसला दिया
- वे न्यायिक अधिकारी जिन्होंने न्यायिक सेवा में आने से पहले बार (वकालत) में सात वर्ष पूरे कर लिए हैं, वे जिला जज या अतिरिक्त जिला जज की सीधी भर्ती में आवेदन करने के पात्र होंगे।
- जिला जज/अतिरिक्त जिला जज के रूप में नियुक्ति के लिए पात्रता आवेदन के समय देखी जाएगी।
- हालांकि अनुच्छेद 233(2) के तहत पहले से न्यायिक सेवा में कार्यरत व्यक्ति के लिए कोई स्पष्ट पात्रता का प्रावधान नहीं है, फिर भी समान अवसर देने के लिए यह निर्देश दिया गया कि सेवा में कार्यरत उम्मीदवारों के पास न्यायिक अधिकारी और अधिवक्ता के रूप में कुल सात वर्षों का अनुभव होना चाहिए।
- जो व्यक्ति या तो न्यायिक सेवा में हैं या रहे हैं, और जिनका न्यायिक अधिकारी व अधिवक्ता के रूप में कुल अनुभव सात वर्ष या उससे अधिक है, वे अनुच्छेद 233(2) के तहत जिला जज या अतिरिक्त जिला जज बनने के पात्र होंगे।
- अवसर सुनिश्चित करने के लिए, अधिवक्ता और न्यायिक अधिकारी दोनों के लिए न्यूनतम आयु आवेदन की तिथि पर 35 वर्ष निर्धारित की गई है।
अदालत ने यह भी कहा कि पहले के दो मामले जिनमें शंकर नारायणन और धीरज मोर मामलों में जो दृष्टिकोण अपनाया गया था, वह सही कानून की व्याख्या नहीं थी। अदालत ने उच्च न्यायालयों और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे इस निर्णय के अनुरूप तीन महीने के भीतर अपने भर्ती नियमों में संशोधन करें।
संबंधित अनुच्छेद को पढ़ना चाहिए
अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 233 को संपूर्ण रूप से पढ़ा जाना चाहिए, न कि उसके उप-अनुच्छेदों को अलग-अलग। साथ ही यह भी कहा गया कि अनुच्छेद 233 की उद्देश्यपरक व्याख्या (purposive interpretation) की जानी चाहिए, न कि शाब्दिक या तकनीकी दृष्टिकोण से। वह व्याख्या अपनाई जानी चाहिए जो प्रशासनिक दक्षता बढ़ाए और योग्य उम्मीदवारों को आकर्षित करे।
इस आदेश के बाद गठित की गई बेंच
आपको बता दें कि यह संवैधानिक पीठ उन तीन-जजों की पीठ के आदेश के बाद गठित की गई थी, जिसमें 12 अगस्त को चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया ने मामले को बड़ी पीठ को भेजने का आदेश दिया था। पीठ ने जिन चार मुख्य प्रश्नों पर विचार किया वह इस प्रकार है।
- क्या वह न्यायिक अधिकारी, जिसने न्यायिक सेवा में भर्ती से पहले बार में सात वर्ष पूरे किए हों, बार कोटे के अंतर्गत अतिरिक्त जिला जज की नियुक्ति का हकदार है?
- जिला जज की नियुक्ति के लिए पात्रता आवेदन के समय देखी जाएगी या नियुक्ति के समय या दोनों?
- क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 233(2) के तहत पहले से न्यायिक सेवा में कार्यरत व्यक्ति के लिए कोई पात्रता शर्त निर्धारित है?
- क्या कोई व्यक्ति जो सात वर्ष तक सिविल जज रहा है या जिसने अधिवक्ता और सिविल जज के रूप में कुल सात वर्ष या उससे अधिक का अनुभव प्राप्त किया है, अनुच्छेद 233 के तहत जिला जज की नियुक्ति के लिए पात्र होगा?
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