प्रत्येक कर्म, चाहे शुभ हो या अशुभ, सूक्ष्म जगत में एक कंपन उत्पन्न करता है। यह कंपन ग्रहों की चाल से जुड़ जाता है और समय के अनुसार फल देता है। जब तक मनुष्य का पाप सीमित होता है, तब तक ग्रह उसकी चेतना को सुधारने के संकेत देते हैं। परंतु जब मनुष्य चेतावनियों को अनसुना कर देता है, तब प्रकृति हस्तक्षेप करती है। यही वह क्षण होता है जिसे कहावत के रूप में कहा जाता है कि, पाप का घड़ा भर गया। कर्म सिद्धांत के अनुसार हर कर्म का फल होता है, चाहे वह शुभ हो या अशुभ। जब व्यक्ति बार-बार गलत कर्म करता है, तो उसकी कर्म ऊर्जा एक घड़े की तरह जमा होती जाती है। जब वह सीमा पार कर जाती है, तो अचानक सब कुछ बिगड़ने लगता है, अपमान, हानि, बीमारी या दुःख के रूप में परिणाम सामने आता है। इसे ही लोग कहते हैं, अब उसके पापों का फल मिल रहा है।
धर्म और पुराणों के अनुसार जब पाप का घड़ा भर जाता है, तब ईश्वर की न्याय व्यवस्था सक्रिय हो जाती है। जैसे रावण, कंस, दुर्योधन, जब उनके अत्याचार सीमा पार कर गए, तो उन्हें अपने कर्मों का परिणाम उसी जीवन में भुगतना पड़ा। ग्रह देते हैं चेतावनी, उपाय बदल देती है जीवन की दिशा - शनि की साढ़ेसाती, राहु-केतु के गोचर या अशुभ दशाएँ, ये सभी मनुष्य को चेतावनी होती हैं कि अभी समय है, अपने कर्म की दिशा को बदलने की जरूरत है, नेक कर्म को बढ़ाऐं ताकि पुण्य बल से अशुभ की अशुभता को कम किया जा सके। यदि पाप का घड़ा भरने से पहले मनुष्य जाग जाए, तो काल का प्रकोप रुक सकता है। दान, सेवा, प्रायश्चित्त, गुरु-स्मरण और ईश्वर की आराधना, ये वे उपाय हैं जो कर्मों की दिशा बदल देते हैं। ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से ज्योतिषी आने वाले संकटों को जानकर व्यक्ति से शुभ कर्म सम्पादित कराकर शूल की पीड़ा को सुई की पीड़ा में बदलने का कार्य करता है।
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