नई दिल्ली: 'कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे, आजाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे...' ये लाइनें स्वतंत्रता की लड़ाई में अपने प्राण न्योछावर कर अमर हो गए शहीद अशफाक उल्ला खां की हैं। महज 27 साल की उम्र में हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ जाने वाले महान क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान अपनी शायरी से देश के युवाओं को उत्साहित करते थे। आज शहीद अशफाक उल्ला खां की 125वीं जन्म जयंती है। उनके तेजस्वी व्यक्तित्व के पीछे एक प्रतिभावान शायर भी छिपा था।
अक्टूबर 1900 में हुआ था अशफाक का जन्म
'सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका, चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे।' जंग-ए-आजादी में अशफाक उल्ला खां की देशप्रेम से ओतप्रोत रचनाएं भारतीय युवाओं में सदा राष्ट्रप्रेम की अलख जगाती रहेंगी। अशफाकउल्ला खान का जन्म 22 अक्टूबर, 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। वे काकोरी ट्रेन डकैती में शामिल इकलौते मुस्लिम क्रांतिकारी थे जिन्होंने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी।
ऐसे बने बिस्मिल और अशफाक दोस्त
अशफाक उल्ला खां को प्यार से ‘अच्चू’ कहा जाता था। वे एक जबरदस्त उर्दू शायर थे और ‘हसरत’ उपनाम से लिखते थे। वे राम प्रसाद बिस्मिल के बहुत करीबी दोस्त थे। बिस्मिल पहले उन्हें क्रांतिकारी दल में शामिल करने में हिचकिचा रहे थे। हालांकि, जल्द ही उनके बीच ऐसी दोस्ती हो गई कि मिसाल दी जाने लगी। ऐसा कहा जाता है कि काकोरी ट्रेन एक्शन के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान एक ही जगह हवन करते और नमाज पढ़ते थे और एक ही थाली में खाना खाते थे। वे हमेशा एक दूसरे के साथ खड़े रहते थे।
भाईचारे की यह क्रांतिकारी कहानी मिसाल
अशफाक और बिस्मिल की सौहार्द और भाईचारे की यह क्रांतिकारी कहानी मिसाल के तौर पर याद की जाती है। नौ अगस्त, 1925 को हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) के क्रांतिकारियों बिस्मिल, अशफाक उल्लाहह खान, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन को रोककर गार्ड के केबिन से ब्रिटिश खजाने को लूट लिया था। ब्रिटिश सरकार ने इस योजना को अंजाम देने के लिए चारों को 19 दिसंबर, 1927 को फांसी दे दी थी।
1920 में बिस्मिल से मिले अशफाक उल्ला
अशफाक उल्ला 1920 में बिस्मिल से मिले और 1927 में उनकी मृत्यु तक उनकी दोस्ती बनी रही। अशफाक उल्लाह और बिस्मिल ने असहयोग आंदोलन के लिए साथ मिलकर काम किया, स्वराज पार्टी के लिए प्रचार किया और 1924 में सचिंद्र नाथ सान्याल, जोगेशचंद्र चटर्जी और बिस्मिल की ओर से स्थापित हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए मिशन चलाए।
फांसी पर चढ़ाए जाने से पहले, अशफाक उल्लाह खान ने लिखा था, 'तंग आकर हम उनके जुल्म बेदाद से, चल दिए सुए-आदम फैजाबाद से।' अशफाक उल्ला खान को 19 दिसंबर, 1927 को फैजाबाद जिला जेल में फांसी दे दी गई और वे अपने पीछे एक अनोखी विरासत छोड़ गए।
अक्टूबर 1900 में हुआ था अशफाक का जन्म
'सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका, चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे।' जंग-ए-आजादी में अशफाक उल्ला खां की देशप्रेम से ओतप्रोत रचनाएं भारतीय युवाओं में सदा राष्ट्रप्रेम की अलख जगाती रहेंगी। अशफाकउल्ला खान का जन्म 22 अक्टूबर, 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। वे काकोरी ट्रेन डकैती में शामिल इकलौते मुस्लिम क्रांतिकारी थे जिन्होंने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी।
ऐसे बने बिस्मिल और अशफाक दोस्त
अशफाक उल्ला खां को प्यार से ‘अच्चू’ कहा जाता था। वे एक जबरदस्त उर्दू शायर थे और ‘हसरत’ उपनाम से लिखते थे। वे राम प्रसाद बिस्मिल के बहुत करीबी दोस्त थे। बिस्मिल पहले उन्हें क्रांतिकारी दल में शामिल करने में हिचकिचा रहे थे। हालांकि, जल्द ही उनके बीच ऐसी दोस्ती हो गई कि मिसाल दी जाने लगी। ऐसा कहा जाता है कि काकोरी ट्रेन एक्शन के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान एक ही जगह हवन करते और नमाज पढ़ते थे और एक ही थाली में खाना खाते थे। वे हमेशा एक दूसरे के साथ खड़े रहते थे।
भाईचारे की यह क्रांतिकारी कहानी मिसाल
अशफाक और बिस्मिल की सौहार्द और भाईचारे की यह क्रांतिकारी कहानी मिसाल के तौर पर याद की जाती है। नौ अगस्त, 1925 को हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) के क्रांतिकारियों बिस्मिल, अशफाक उल्लाहह खान, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन को रोककर गार्ड के केबिन से ब्रिटिश खजाने को लूट लिया था। ब्रिटिश सरकार ने इस योजना को अंजाम देने के लिए चारों को 19 दिसंबर, 1927 को फांसी दे दी थी।
1920 में बिस्मिल से मिले अशफाक उल्ला
अशफाक उल्ला 1920 में बिस्मिल से मिले और 1927 में उनकी मृत्यु तक उनकी दोस्ती बनी रही। अशफाक उल्लाह और बिस्मिल ने असहयोग आंदोलन के लिए साथ मिलकर काम किया, स्वराज पार्टी के लिए प्रचार किया और 1924 में सचिंद्र नाथ सान्याल, जोगेशचंद्र चटर्जी और बिस्मिल की ओर से स्थापित हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए मिशन चलाए।
फांसी पर चढ़ाए जाने से पहले, अशफाक उल्लाह खान ने लिखा था, 'तंग आकर हम उनके जुल्म बेदाद से, चल दिए सुए-आदम फैजाबाद से।' अशफाक उल्ला खान को 19 दिसंबर, 1927 को फैजाबाद जिला जेल में फांसी दे दी गई और वे अपने पीछे एक अनोखी विरासत छोड़ गए।
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