अभिषेक अग्रवाल, जोशीमठ: उत्तराखंड में ज्योर्तिमठ से 13 किलोमीटर पहले निर्माणाधीन हेलंग मारवाड़ी बाईपास का निर्माण कार्य कर रही संस्था द्वारा निर्माण कार्य से इकट्ठे हो रहे मलबे को सीधा नदी में फेंका जा रहा है दरअसल यहां हेलंग से मारवाड़ी तक 13 किलोमीटर की बाईपास सड़क निर्माणाधीन है।
स्थानीय लोगों का आरोप है, कि कार्य कर रही संस्था द्वारा डंप यार्ड ना बनाकर मलबे को सीधा अलकनंदा में फेंका जा रहा है। जिससे पर्यावरण प्रदूषित होने के साथ-साथ नदी का रुख बदल रहा है। और कटाव बढ़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है, कि जब से हेलंग मारवाड़ी बाईपास का निर्माण कार्य शुरू हुआ है तब ही से संस्था द्वारा मलवा सीधा नदी में फेंका जा रहा है।
कई बार शिकायत कर देने के बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ। उपजिलाधिकारी चंद्रशेखर वशिष्ठ ने कहा, "मेरे संज्ञान में आया है, की हेलंग मारवाड़ी बाईपास का कार्य कर रही संस्था द्वारा मलबा अलकनंदा में फेंका जा रहा है मामले की जांच करवाई जाएगी।"
नदियों का रास्ता रोकना ठीक नहीं: तिवारी
मामले पर पर्यावरण की परख रखने वाले सुधीर तिवारी कहते हैं, की उत्तराखंड के पहाड़ी अंचलों में जब भी नदियों का रास्ता रोका गया या नदियों पर जबरदस्ती दबाव बनाने के प्रयास हुए तब तब प्रकृति ने रौद्र रूप में आकर अपना रोष प्रकट किया है।
बीते दिनों उत्तराखंड के विभिन्न पहाड़ी अंचलों में आई आपदाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यहां अधिकांश आपदाएं प्राकृतिक जल स्रोतों एवं नदियों से छेड़छाड़ की वजह से आती है। जिससे भीषण नुकसान हो रहा है प्रयास करना चाहिए की प्रकृति से छेड़छाड़ करने से बचा जाए और पर्यावरण प्रदूषण न हो इस और ध्यान देना जरूरी है।
स्थानीय लोगों का आरोप है, कि कार्य कर रही संस्था द्वारा डंप यार्ड ना बनाकर मलबे को सीधा अलकनंदा में फेंका जा रहा है। जिससे पर्यावरण प्रदूषित होने के साथ-साथ नदी का रुख बदल रहा है। और कटाव बढ़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है, कि जब से हेलंग मारवाड़ी बाईपास का निर्माण कार्य शुरू हुआ है तब ही से संस्था द्वारा मलवा सीधा नदी में फेंका जा रहा है।
कई बार शिकायत कर देने के बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ। उपजिलाधिकारी चंद्रशेखर वशिष्ठ ने कहा, "मेरे संज्ञान में आया है, की हेलंग मारवाड़ी बाईपास का कार्य कर रही संस्था द्वारा मलबा अलकनंदा में फेंका जा रहा है मामले की जांच करवाई जाएगी।"
नदियों का रास्ता रोकना ठीक नहीं: तिवारी
मामले पर पर्यावरण की परख रखने वाले सुधीर तिवारी कहते हैं, की उत्तराखंड के पहाड़ी अंचलों में जब भी नदियों का रास्ता रोका गया या नदियों पर जबरदस्ती दबाव बनाने के प्रयास हुए तब तब प्रकृति ने रौद्र रूप में आकर अपना रोष प्रकट किया है।
बीते दिनों उत्तराखंड के विभिन्न पहाड़ी अंचलों में आई आपदाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यहां अधिकांश आपदाएं प्राकृतिक जल स्रोतों एवं नदियों से छेड़छाड़ की वजह से आती है। जिससे भीषण नुकसान हो रहा है प्रयास करना चाहिए की प्रकृति से छेड़छाड़ करने से बचा जाए और पर्यावरण प्रदूषण न हो इस और ध्यान देना जरूरी है।
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