पटना: बिहार में महागठबंधन ने अपना चुनावी घोषणापत्र जारी किया है, लेकिन इसके कवर पेज पर मुस्लिम नेताओं की तस्वीरें कम होने पर विवाद हो रहा है। 'तेजस्वी की प्रतिज्ञा' नाम के इस घोषणापत्र के कवर पर सिर्फ एक मुस्लिम नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी की तस्वीर है। यह बात समुदाय के कुछ लोगों और नेताओं को नागवार गुजरी है, खासकर तब जब महागठबंधन लगातार अल्पसंख्यक कल्याण की बात करता रहा है और आरजेडी का पारंपरिक मुस्लिम-यादव (एमवाई) वोट बैंक रहा है।
यह मुद्दा इसलिए भी गरमाया है क्योंकि 2022 के जातिगत सर्वेक्षण के अनुसार बिहार की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी करीब 18 फीसदी है। ऐसे में मुस्लिम समुदाय के कई प्रतिनिधियों ने सवाल उठाया है कि नेतृत्व में उनकी भागीदारी उनकी आबादी के अनुपात में क्यों नहीं है। कुछ मुस्लिम नेताओं ने तो यह भी कहा है कि निषाद समुदाय, जिसकी आबादी मुश्किल से 2 फीसदी है, उसे उपमुख्यमंत्री का पद दिया गया है, लेकिन 18 फीसदी मुसलमानों को नजरअंदाज किया गया है।
मुकेश सहनी का कद बढ़ाइस विवाद को और हवा तब मिली जब निषाद समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी घोषणापत्र के कवर पर प्रमुखता से दिखे। उनकी तस्वीर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के ठीक नीचे लगाई गई है, जो गठबंधन में उनके बढ़ते कद का संकेत दे रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, 23 अक्टूबर को पटना के मौर्य होटल में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा के समय मुकेश सहनी ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने से पहले उप मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग की थी। कहा जा रहा है कि आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों के शीर्ष नेताओं के साथ बातचीत के बाद उनकी यह मांग मान ली गई।
कवर पेज दे रहा संदेश'तेजस्वी की प्रतिज्ञा' के कवर पर राहुल गांधी, सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, डी राजा, दीपंकर भट्टाचार्य, अब्दुल बारी सिद्दीकी, मुकेश सहनी, राजेश राम, मंगनी लाल मंडल और अन्य की तस्वीरें हैं।
मुकेश सहनी के नेतृत्व वाली विकासशील इंसान पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में 15 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, हालांकि मुकेश सहनी खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। आरजेडी 143 सीटों पर, कांग्रेस 61 सीटों पर और वाम दल बाकी बची सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। कुछ सीटों पर महागठबंधन के उम्मीदवारों के बीच 'फ्रेंडली फाइट' भी देखने को मिलेगी।
घोषणापत्र का कवर अक्सर किसी भी राजनीतिक दल या गठबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण संदेशवाहक होता है, और इस मामले में, यह संदेश कुछ लोगों के लिए चिंता का विषय बन गया है। महागठबंधन के नेताओं के लिए अब यह एक चुनौती होगी कि वे इस मुद्दे पर समुदाय की चिंताओं को कैसे दूर करते हैं और अपने चुनावी वादों को कैसे पूरा करते हैं।
यह मुद्दा इसलिए भी गरमाया है क्योंकि 2022 के जातिगत सर्वेक्षण के अनुसार बिहार की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी करीब 18 फीसदी है। ऐसे में मुस्लिम समुदाय के कई प्रतिनिधियों ने सवाल उठाया है कि नेतृत्व में उनकी भागीदारी उनकी आबादी के अनुपात में क्यों नहीं है। कुछ मुस्लिम नेताओं ने तो यह भी कहा है कि निषाद समुदाय, जिसकी आबादी मुश्किल से 2 फीसदी है, उसे उपमुख्यमंत्री का पद दिया गया है, लेकिन 18 फीसदी मुसलमानों को नजरअंदाज किया गया है।
मुकेश सहनी का कद बढ़ाइस विवाद को और हवा तब मिली जब निषाद समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी घोषणापत्र के कवर पर प्रमुखता से दिखे। उनकी तस्वीर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के ठीक नीचे लगाई गई है, जो गठबंधन में उनके बढ़ते कद का संकेत दे रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, 23 अक्टूबर को पटना के मौर्य होटल में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा के समय मुकेश सहनी ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने से पहले उप मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग की थी। कहा जा रहा है कि आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों के शीर्ष नेताओं के साथ बातचीत के बाद उनकी यह मांग मान ली गई।
कवर पेज दे रहा संदेश'तेजस्वी की प्रतिज्ञा' के कवर पर राहुल गांधी, सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, डी राजा, दीपंकर भट्टाचार्य, अब्दुल बारी सिद्दीकी, मुकेश सहनी, राजेश राम, मंगनी लाल मंडल और अन्य की तस्वीरें हैं।
मुकेश सहनी के नेतृत्व वाली विकासशील इंसान पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में 15 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, हालांकि मुकेश सहनी खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। आरजेडी 143 सीटों पर, कांग्रेस 61 सीटों पर और वाम दल बाकी बची सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। कुछ सीटों पर महागठबंधन के उम्मीदवारों के बीच 'फ्रेंडली फाइट' भी देखने को मिलेगी।
घोषणापत्र का कवर अक्सर किसी भी राजनीतिक दल या गठबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण संदेशवाहक होता है, और इस मामले में, यह संदेश कुछ लोगों के लिए चिंता का विषय बन गया है। महागठबंधन के नेताओं के लिए अब यह एक चुनौती होगी कि वे इस मुद्दे पर समुदाय की चिंताओं को कैसे दूर करते हैं और अपने चुनावी वादों को कैसे पूरा करते हैं।
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