मोबाइल तकनीक ने बीते दो दशकों में जितनी तेज़ी से प्रगति की है, उसी रफ्तार से बदल गया है सिम कार्ड का आकार और स्वरूप। एक समय था जब मोबाइल में जो सिम डाला जाता था, उसका आकार किसी क्रेडिट कार्ड जितना बड़ा हुआ करता था। आज, वही सिम कार्ड अब नैनो साइज में सिमट चुका है — इतना छोटा कि उंगलियों से फिसल जाए।
सिम कार्ड का इतिहास: कहां से कहां पहुंचा
सिम कार्ड की शुरुआत 1991 में हुई थी, जब GSM तकनीक के तहत मोबाइल संचार की शुरुआत हुई। शुरुआती दौर में उपयोग होने वाला “फुल साइज सिम कार्ड” लगभग 85.6 मिमी लंबा और 53.98 मिमी चौड़ा होता था — एकदम क्रेडिट कार्ड के आकार का। यह प्लास्टिक की एक मोटी चिप हुआ करती थी, जिसे केवल भारी-भरकम मोबाइल उपकरणों में ही इस्तेमाल किया जा सकता था।
वर्षों के साथ मोबाइल फोन छोटे और हल्के होते गए, और इसी के साथ शुरू हुआ सिम कार्ड के आकार में बदलाव का दौर।
साइज छोटा, तकनीक तेज़
मिनी सिम (1996):
यह वही सिम है जिसे आम भाषा में “नॉर्मल सिम” कहा जाता है। इसका साइज 25 मिमी × 15 मिमी था। यह लंबे समय तक स्टैंडर्ड बना रहा।
माइक्रो सिम (2010):
स्मार्टफोन की बढ़ती मांग के बीच कंपनियों ने फोन को और पतला और हल्का बनाने के लिए माइक्रो सिम की शुरुआत की, जिसका आकार घटकर 15 मिमी × 12 मिमी हो गया।
नैनो सिम (2012):
वर्तमान समय में सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला सिम। इसका साइज मात्र 12.3 मिमी × 8.8 मिमी होता है। केवल चिप ही बची है, प्लास्टिक फ्रेम लगभग न के बराबर।
अगला कदम: eSIM
अब तकनीक ने एक और छलांग लगा ली है। अब eSIM (इंबेडेड सिम) का युग शुरू हो चुका है, जहां फिजिकल सिम की जरूरत ही नहीं पड़ती। फोन के अंदर ही एक वर्चुअल सिम एक्टिवेट किया जा सकता है। कई बड़े स्मार्टफोन ब्रांड जैसे Apple, Samsung और Google अब eSIM तकनीक को प्रमुखता से अपना रहे हैं।
eSIM पर्यावरण के लिहाज से भी बेहतर मानी जा रही है क्योंकि इसमें प्लास्टिक का प्रयोग नहीं होता और यह पूरी तरह डिजिटल प्रक्रिया है।
जानकारी जो चौंका दे
सबसे पहला सिम कार्ड जर्मनी में बनाया गया था।
एक सिम कार्ड में करीब 250 कॉन्टेक्ट्स और 160 SMS स्टोर किए जा सकते थे।
आज की eSIM तकनीक एक ही फोन में कई प्रोफाइल्स स्टोर करने की सुविधा देती है।
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