बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर राजनीतिक हलकों में सरगर्मी बढ़ चुकी है। जहां एक ओर राजनीतिक दल अपने-अपने स्तर पर तैयारी में जुटे हैं, वहीं दूसरी ओर राजस्थान के मशहूर फलोदी सट्टा बाजार ने भी अपनी भविष्यवाणी जारी कर दी है। यह बाजार अक्सर चुनावी नतीजों से पहले अपने अनुमान के कारण सुर्खियों में रहता है — और इस बार भी इसके आंकड़े चौंकाने वाले हैं।
 एनडीए को फिर सत्ता में लौटते देख रहा सट्टा बाजार
फलोदी सट्टा बाजार के मुताबिक, इस बार भी बिहार में एनडीए गठबंधन की सरकार बनने की संभावना जताई गई है। ताजा अनुमानों के अनुसार, एनडीए को 135 से 138 सीटों के बीच मिलने का अनुमान है, जो अब तक आए राजनीतिक सर्वेक्षणों की तुलना में कहीं अधिक है। वहीं, महागठबंधन के लिए यह भविष्यवाणी कुछ निराशाजनक साबित हो सकती है, क्योंकि बाजार का कहना है कि उसे केवल 93 से 96 सीटें मिलने की संभावना है।   
दिलचस्प बात यह है कि सटोरियों ने किसी व्यक्तिगत उम्मीदवार के जीत या हार के भाव जारी नहीं किए हैं, बल्कि केवल गठबंधन स्तर पर अनुमान साझा किया है।
पहले के सर्वे में महागठबंधन को बताई गई थी बढ़त
   
इससे पहले जारी हुए वोट वाइब सर्वे में महागठबंधन को थोड़ी बढ़त दिखाई गई थी। सर्वे के दौरान जब जनता से पूछा गया कि बिहार में किसकी सरकार बनेगी, तो 34.7% लोगों ने महागठबंधन की जीत का अनुमान लगाया, जबकि 34.4% ने एनडीए की वापसी की बात कही। वहीं, 12.3% लोगों ने प्रशांत किशोर की पार्टी ‘जन सुराज’ को संभावित विजेता बताया।
लगभग 10% लोगों ने स्पष्ट राय देने से परहेज किया, जिससे यह साफ है कि मतदाताओं का बड़ा वर्ग अभी निर्णय नहीं ले पाया है।
जन सुराज ने बनाया त्रिकोणीय मुकाबला
वोट वाइब के संस्थापक अमिताभ तिवारी ने एक टीवी चैनल से बातचीत में कहा कि इस बार बिहार में मुकाबला सीधा नहीं, बल्कि त्रिकोणीय हो गया है। उनके मुताबिक, “प्रशांत किशोर की पार्टी ‘जन सुराज’ के आने से समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि उनकी मौजूदगी से किस गठबंधन को नुकसान या फायदा होगा।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि तेजस्वी यादव द्वारा “हर घर सरकारी नौकरी” के वादे ने महागठबंधन को कुछ हद तक बढ़त दिलाई है, लेकिन जन सुराज की सक्रियता ने इस बढ़त को अस्थिर कर दिया है।
सट्टा बाजार बनाम सर्वे: किसकी भविष्यवाणी सटीक?
अब देखने वाली बात यह होगी कि आखिरकार फलोदी सट्टा बाजार की भविष्यवाणी सच साबित होती है या वोट वाइब जैसे सर्वेक्षणों की रिपोर्ट। इतिहास गवाह है कि कई बार सट्टा बाजार के अनुमान चौंकाने वाली सटीकता के साथ सही निकले हैं, लेकिन कुछ मौकों पर यह गलत भी साबित हुए हैं।
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