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आईएसआई का एफएटीएफ से धोखा, जैश ने बनाया 3.91 अरब रुपये का डिजिटल हवाला नेटवर्क

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New Delhi, 20 अगस्त . अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठनों को लगातार धोखे में रखकर पाकिस्तान, आतंकी नेटवर्क को पनाह और प्रोत्साहन दे रहा है. पाकिस्तान ने फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने के लिए जैश-ए-मोहम्मद जैसे प्रतिबंधित आतंकी संगठन पर कार्रवाई का दावा किया था.

वहीं, दूसरी ओर पाकिस्तान ने फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की आंखों में धूल झोंकी और जैश-ए-मोहम्मद ने पाकिस्तान में ही 3.91 अरब रुपए का डिजिटल हवाला नेटवर्क खड़ा कर लिया. एक खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस आतंकी संगठन ने कथित प्रतिबंध के बावजूद करोड़ों रुपए मोबाइल वॉलेट्स में जमा किए हैं. जमा की गई इस रकम से हथियारों की खरीद और आतंक का पोषण किया गया है. साथ ही इस रकम का एक मोटा हिस्सा आतंकी मसूद अजहर व उसके परिवार के ऐशो-आराम पर खर्च हो रहा है.

वहीं, ऑपरेशन सिंदूर के बाद अब फिर से पाकिस्तान में जैश का नेटवर्क सक्रिय है. पाकिस्तान की सरकार और सेना जैश को पुनर्निर्माण में परोक्ष रूप से मदद कर रहे हैं. रक्षा विशेषज्ञों द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक भारत विरोधी आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) को धोखा दिया है. एफएटीएफ की सख्ती से बचने के लिए नया रास्ता निकाल लिया गया है.

जांच में खुलासा हुआ है कि जैश अब बैंक खातों के बजाय डिजिटल वॉलेट ईजी पे और सादा पे के जरिए अरबों रुपये की फंडिंग कर रहा है. यह कदम पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से एफएटीएफ को धोखा देने के लिए उठाया गया. दरअसल, 2019 में पाकिस्तान सरकार ने एफएटीएफ ग्रे-लिस्ट से बाहर निकलने के लिए नेशनल एक्शन प्लान के तहत यह दिखाया कि उसने जैश पर कार्रवाई की है. मसूद अजहर, उसके भाई रऊफ असगर और छोटे भाई तल्हा अल सैफ के बैंक खातों को फ्रीज किया गया. इनको मिलने वाले चंदे पर रोक लगाई गई और अन्य स्रोतों से होने वाली फंडिंग बंद कर दी गई. इसके चलते 2022 में पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे-लिस्ट से बाहर आ गया. लेकिन इसके बाद आईएसआई और जैश ने नया हथकंडा अपनाया. यह हथकंडा था-डिजिटल हवाला. अब चंदा सीधे ऑनलाइन वॉलेट्स में जा रहा है, जिनका इस्तेमाल मसूद अजहर के परिवारजन और कमांडर कर रहे हैं.

इसके साथ ही आतंकी संगठन ने 313 नए मरकज शुरू करने का अभियान भी शुरू किया है. 7 मई 2025 को भारत की ऑपरेशन सिंदूर कार्रवाई में जैश का मुख्यालय मरकज सुब्हानअल्लाह और चार अन्य ट्रेनिंग कैंप तबाह कर दिए गए. इसके बाद पाकिस्तान सरकार ने इन ढांचों को दोबारा खड़ा करने के लिए धन उपलब्ध कराने की घोषणा कर दी. इसी बीच जैश ने ऑनलाइन चंदा अभियान शुरू किया है. 313 नए मरकज बनाने के नाम पर यह चंदा इकट्ठा किया जा रहा है. हर मरकज के लिए 1.25 करोड़ पाकिस्तानी रुपये की मांग रखी गई है, जिससे कुल 3.91 अरब रुपये (391 करोड़ पाकिस्तानी रुपए) जमा करने का लक्ष्य है.

रक्षा सूत्रों के मुताबिक इसके लिए फेसबुक और व्हाट्सऐप चैनलों पर पोस्टर, वीडियो और मसूद अजहर का पत्र प्रसारित कर चंदे की अपील की जा रही है. जांच में कई पाकिस्तानी मोबाइल नंबर और सीएनआईसी सामने आए हैं, जिनसे ये वॉलेट जुड़े हैं. तल्हा अल सैफ़ (मसूद अजहर का भाई) – सादा पे अकाउंट, हरिपुर जिला के कमांडर आफताब अहमद के नाम से जुड़ा है. अब्दुल्ला अजहर (मसूद अजहर का बेटा) – ईजी पे वॉलेट, मुल्तान नंबर से संचालित कर रहा है. सैयद सफदर शाह जैश कमांडर, मनसेहरा जिला से ईजी पे वॉलेट से रुपए जुटा रहा है.

रक्षा सूत्रों के मुताबिक ऐसे 250 से अधिक वॉलेट्स से चंदा इकट्ठा किया जा रहा है. जैश हर 3–4 महीने में नए अकाउंट बनाता है ताकि एफएटीएफ या अन्य एजेंसियां ट्रैक न कर सकें. अनुमान है कि 80–90 करोड़ रुपये सालाना केवल डिजिटल वॉलेट्स के जरिये ट्रांसफर किए जा रहे हैं. जैश दावा करता है कि यह पैसा मरकज निर्माण पर लगेगा, लेकिन जांच बताती है कि असल लागत इकठ्ठा किए जा रहे धन से कहीं कम है. बड़ी संख्या में राशि हथियारों, ट्रेनिंग कैंप, प्रोपेगंडा, और अजहर परिवार की ऐशो-आराम की जिंदगी पर खर्च हो रही है. जैश के पास पहले से मशीनगन, रॉकेट लॉन्चर और मोर्टार मौजूद हैं. अब लक्ष्य है ड्रोन और उन्नत हथियार खरीदना.

गौरतलब है कि ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय हमले में मरकज सुब्हानअल्लाह समेत कई ठिकाने नष्ट हुए. इसमें मसूद अजहर का भांजा हमजा, जीजा जमील अहमद और अन्य 14 आतंकी मारे गए थे. इसके बावजूद जैश का नेटवर्क सक्रिय है और पाकिस्तान सरकार व सेना की परोक्ष मदद से पुनर्निर्माण कर रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान भले ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह दावा करता हो कि उसने आतंकी फंडिंग रोक दी है, लेकिन हकीकत यह है कि जैश-ए-मोहम्मद डिजिटल हवाला प्रणाली के जरिये अरबों रुपये जुटाकर अपना आतंकी ढांचा और मज़बूत कर रहा है. इससे साफ है कि एफएटीएफ की निगरानी केवल बैंकिंग नेटवर्क तक सीमित रहने से पाकिस्तान जैसे देश आसानी से बच निकलते हैं.

जीसीबी/डीएससी

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