New Delhi, 8 नवंबर . जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने विभिन्न राज्यों के ब्लॉक एजुकेशन अधिकारियों द्वारा Governmentी व गैर-Governmentी स्कूलों में ‘वंदे मातरम’ गायन को अनिवार्य करने और उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग भेजने के निर्देशों की निंदा की है. उन्होंने इसे संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) का खुला उल्लंघन करार दिया.
मौलाना मदनी ने कहा कि यह कदम अत्यंत चिंताजनक है और खतरनाक मिसाल कायम कर रहा है, जो मुस्लिम समुदाय की आस्थाओं पर हमला है.
उन्होंने स्पष्ट किया कि वंदे मातरम की रचना बैंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित उपन्यास ‘आनंदमठ’ में है, जो पूरी तरह शिर्कीय अकीदे पर आधारित है. विशेष रूप से इसके शेष चार पदों में मातृभूमि को देवी दुर्गा के रूप में चित्रित कर पूजा के शब्दों का प्रयोग किया गया है, जो एकेश्वरवादी इस्लाम की मूल भावना के खिलाफ है.
मौलाना ने कहा कि मुसलमान केवल एक ईश्वर की इबादत करते हैं, इसलिए ऐसे गीत का गायन उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है. मौलाना ने संविधान के अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का हवाला देते हुए कहा कि किसी को भी आस्था के विरुद्ध कोई गीत या नारा गाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
उन्होंने कहा कि Supreme court ने भी अपने निर्णयों में स्पष्ट किया है कि राष्ट्रगान या किसी गीत को धार्मिक विश्वासों के खिलाफ गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. 26 अक्टूबर 1937 को गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर सलाह दी थी कि वंदे मातरम के केवल पहले दो पद ही राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाए जाएं, क्योंकि शेष पद एकेश्वरवादी धर्मों से टकराते हैं.
इसी सलाह पर 29 अक्टूबर 1937 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने निर्णय लिया कि केवल दो पदों को ही मान्यता दी जाएगी.
–
एसएके/डीकेपी
You may also like

राजगढ़ःतेज गति से जा रही कार पलटने से एक की मौत, तीन गंभीर घायल

राहु-केतु का नक्षत्र परिवर्तन 2025: इन राशियों के लिए है शुभ समय

UP Home Guard Bharti 2025: यूपी में 45,000 होमगार्ड भर्ती प्रक्रिया शुरू, पहले करें OTR रजिस्ट्रेशन, जानें सभी नियम और योग्यता

बिहार चुनाव: रिकॉर्ड वोटिंग, जाति, रोज़गार और महिलाओं की भूमिका क्या संकेत दे रही हैं?

इतिहास के पन्नों में 10 नवंबर : वाजपेयी का संयुक्त राष्ट्र महासभा में ऐतिहासिक संबोधन




