किसी समय की बात है, एक गांव में एक विद्वान पंडितजी निवास करते थे। उन्होंने विभिन्न विषयों में गहरी शिक्षा प्राप्त की थी और अपने ज्ञान पर उन्हें गर्व था। वह अक्सर अपने ज्ञान का प्रदर्शन करते और दूसरों को नीचा दिखाने में संकोच नहीं करते थे।
पंडितजी की नाव में आई बाधा
एक दिन, पंडितजी को एक अन्य गांव जाना था, लेकिन रास्ते में एक नदी आई। उन्होंने एक नाव किराए पर ली और आराम से उसमें बैठ गए। नाविक एक साधारण व्यक्ति था। नाव में बैठते ही पंडितजी का अभिमान जाग उठा और उन्होंने नाविक से पूछा, "तुमने कितनी शिक्षा प्राप्त की है?" नाविक ने उत्तर दिया, "बस थोड़ा बहुत पढ़ा है, पंडितजी।"
पंडितजी ने फिर व्याकरण के बारे में पूछा, जिस पर नाविक ने सिर हिलाया। पंडितजी ने उसे नीचा दिखाते हुए कहा, "तुमने व्याकरण भी नहीं पढ़ी?" फिर उन्होंने भूगोल और इतिहास के बारे में भी पूछा, और नाविक ने फिर से ना कहा। पंडितजी गर्व से बोले, "मैंने जीवन का सही उपयोग किया है।"
कुछ समय बाद, तेज हवा चलने लगी और नाव डगमगाने लगी। पंडितजी डर गए और नाविक से पूछा, "क्या आपको तैरना आता है?" नाविक ने हंसते हुए कहा, "नहीं, लेकिन अब तुम्हें अपने ज्ञान की मदद लेनी होगी, क्योंकि यह नाव डूबने वाली है।"
नाविक ने अपनी समझदारी से नाव को किनारे पर लाया। पंडितजी को अपनी गलती का एहसास हुआ कि ज्ञान का आकार मायने नहीं रखता, बल्कि उसका उपयोग महत्वपूर्ण है।
सीख
हमें कभी भी किसी को उसके ज्ञान या स्थिति के आधार पर नीचा नहीं दिखाना चाहिए। हर व्यक्ति में कोई न कोई विशेषता होती है, और हमें सभी को समान दृष्टि से देखना चाहिए।
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