उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के एक छोटे से गांव में विवाह का दिन था। फूलपुर कोतवाली क्षेत्र के इस गांव में खुशियों का माहौल था, क्योंकि इंदौर से बारात आने वाली थी। दुल्हन की आंखों में नए सपनों की चमक थी। लेकिन जब बारात दरवाजे पर पहुंची, तो जो हुआ, वह गांव के लोगों के लिए एक अविस्मरणीय घटना बन गई।
जब बारात का स्वागत किया गया और द्वारचार की रस्म शुरू हुई, दुल्हन सज-धज कर मंडप में पहुंची। लेकिन जैसे ही उसकी नजर दूल्हे पर पड़ी, वह चौंक गई। दूल्हे की उम्र उसके पिता के बराबर थी! दुल्हन का दिल धड़कने लगा और उसने तुरंत कहा, "दूल्हा तो मेरे पापा जैसा है! मैं इस शादी के लिए तैयार नहीं हूं।"
इस पर पूरा माहौल एक पल के लिए ठहर गया। दुल्हन के परिवार के लोग हैरान रह गए, क्योंकि उन्हें शादी से पहले किसी और युवक की तस्वीर दिखाई गई थी। बारात में आए मेहमानों ने समझाने की कोशिश की, लेकिन दुल्हन अपने निर्णय पर अडिग रही। उसने स्पष्ट रूप से मना कर दिया।
इसके बाद परिवार वालों ने पंचायत बुलाई और कई घंटों तक बातचीत की। रिश्तेदारों ने भी समझाने का प्रयास किया। जब कोई समाधान नहीं निकला, तो किसी ने पुलिस को सूचित कर दिया। पुलिस मौके पर पहुंची, लेकिन दोनों पक्षों के बीच मामला शांति से सुलझा लिया गया। अंततः बारात बिना दुल्हन के लौट गई।
दुल्हन के साहस और घरातियों की इंसानियत की चर्चा पूरे गांव में होने लगी। घरातियों ने बारातियों को भोजन कराया और आदरपूर्वक विदा किया। यह दिन और यह निर्णय पूरे गांव में लड़कियों के अधिकार और अपनी इच्छाओं के लिए खड़े होने का एक उदाहरण बन गया।
कहानी का संदेश:
शादी जीवन का एक महत्वपूर्ण निर्णय है — यह हर लड़की का अधिकार है कि वह अपनी इच्छा और सहमति से ही विवाह करे। सच और आत्मसम्मान से बड़ा कुछ नहीं।
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