छत्तीसगढ़ में माओवादियों के ख़िलाफ़ सुरक्षाबलों के आक्रामक अभियानों के बीच बस्तर को 'माओवाद मुक्त' घोषित किए जाने पर बहस शुरू हो गई है.
बुधवार को मीडिया में दिन भर बस्तर को 'माओवाद मुक्त' घोषित किए जाने की ख़बर छाई रही.
राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का कहना है कि सुरक्षाबल लगातार माओवाद प्रभावित इलाकों में ऑपरेशन कर रहे हैं और माओवादियों का दायरा सिमट रहा है.
विष्णुदेव साय ने बीबीसी से कहा, "केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 तक भारत को माओवादी आतंक से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है. हम लगातार उसकी तरफ़ आगे बढ़ रहे हैं. सुरक्षा बलों को इस मोर्चे पर उल्लेखनीय सफलता मिल रही है. निश्चित ही अब हम लक्ष्य के काफ़ी करीब हैं."
लेकिन मुख्यमंत्री के बयान से अलग, उनकी ही सरकार के मंत्री ने बस्तर को 'माओवाद मुक्त' घोषित कर दिया.
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असल में केंद्र सरकार की अधिकृत सूची की मानें तो छत्तीसगढ़ के 33 में से 15 ज़िले माओवादी हिंसा से ग्रस्त रहे हैं. केंद्र सरकार ने माओवाद प्रभावित ज़िलों की चार श्रेणियां निर्धारित की हैं.
पिछले साल मार्च तक राज्य में 'सर्वाधिक माओवाद प्रभावित' श्रेणी में छत्तीसगढ़ के सात ज़िले शामिल थे.
अब यह संख्या घट कर चार रह गई है.
इनमें बस्तर संभाग के बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा ज़िले शामिल हैं. हालांकि इन ज़िलों का वर्गीकरण पिछले साल ही किया गया था.

बुधवार को राज्य सरकार के मंत्री ने भी बस्तर ज़िले को 'माओवाद मुक्त' होने का एलान कर दिया. हालांकि इसका निर्धारण केंद्रीय गृह मंत्रालय करता है और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ऐसी कोई घोषणा नहीं की है.
बस्तर ज़िले के कलेक्टर हरीश एस ने भी इस बात से इनकार किया कि बस्तर को 'माओवाद मुक्त' घोषित किया गया है.
उन्होंने कहा, "बस्तर अप्रैल 2025 से लेगेसी एंड थ्रस्ट डिस्ट्रिक्ट कैटेगरी में आया है. ये नहीं कि एलडब्ल्यूई सूची से हट गया या नक्सल मुक्त हो गया. उस टाइप से तो नहीं बता सकते. हम अभी भी लेगेसी एंड थ्रस्ट डिस्ट्रिक्ट कैटेगरी में हैं."
जबकि राज्य के वरिष्ठ आदिवासी मंत्री रामविचार नेताम ने दावा किया, "आज बस्तर के नक्सल क्षेत्र को पूरी तरह से नक्सल मुक्त कर दिया गया है. मैं समझता हूं कि थोड़ा बहुत कहीं छिट-पुट बचे होंगे तो अगले मार्च तक उनका भी पूरी तरह से सफाया हो जाएगा."
आदिम जाति विकास, अनुसूचित जाति विकास, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक विकास, कृषि जैसे विभाग की कमान संभाल रहे रामविचार नेताम इससे पहले की सरकारों में गृहमंत्री भी रह चुके हैं.
कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे आदिवासी नेता अमरजीत भगत ने बस्तर को माओवाद मुक्त बताए जाने पर तंज कसा.
उन्होंने कहा, "शांति हर कोई चाहता है और शांति बहाली के लिए कोई भी प्रयास अगर करता है तो उसका कहीं कोई विरोध नहीं है. लेकिन उसमें निष्पक्षता होनी चाहिए और कहीं भी बेगुनाह नहीं मारा जाना चाहिए. बस हम तो शुरू से यही कह रहे हैं."
उन्होंने कहा, "शांति की बात बस्तर से आएगी. ये तो जब जनता कहेगी कि बस्तर शांत हो गया है, तब माना जाएगा कि बस्तर शांत हो गया."
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में 7 ज़िले- बस्तर, दंतेवाड़ा, कांकेर, नारायणपुर, सुकमा, बीजापुर और कोंडागांव शामिल है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि देश में माओवाद से 'सर्वाधिक प्रभावित ज़िले' (मोस्ट अफ़ेक्टेड डिस्ट्रिक्ट्स) श्रेणी में तीन राज्यों के 6 ज़िले शामिल हैं.
इनमें छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के ही चार ज़िले बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा हैं. इनके अलावा झारखंड का पश्चिम सिंहभूम और महाराष्ट्र का गढ़चिरौली ज़िला भी इस श्रेणी में शामिल है.
इसी तरह माओवाद से 'अन्य प्रभावित ज़िले' (अदर अफ़ेक्टेड डिस्ट्रिक्ट्स) की श्रेणी में चार राज्यों के 6 ज़िलों को रखा गया है. इनमें से 3 ज़िले छत्तीसगढ़ के हैं.
इन ज़िलों में बस्तर संभाग के ही दंतेवाड़ा ज़िले के अलावा गरियाबंद और मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी ज़िले को शामिल किया गया है.
इस श्रेणी में झारखंड का लातेहार, ओडिशा का नुआपाड़ा और तेलंगाना का मुलुगु ज़िला है.
माओवाद से प्रभावित 'चिंताजनक ज़िले' (डिस्ट्रिक्ट्स ऑफ़ कंसर्न्स) की श्रेणी में देश के 6 ज़िले हैं.
ये ज़िले हैं - आंध्र प्रदेश का अल्लूरी सीताराम राजू, मध्य प्रदेश का बालाघाट, ओडिशा का कालाहांडी, कंधमाल, मलकानगिरी और तेलंगाना के भद्राद्री-कोठागुडेम.
माओवाद की लेगेसी एंड थ्रस्ट डिस्ट्रिक्ट्स की श्रेणी में उन ज़िलों को रखा गया है, जहां माओवादी गतिविधियां कम हैं. लेकिन इन ज़िलों में सतर्कता की ज़रूरत है.
इस श्रेणी में पश्चिम बंगाल के झारग्राम, ओडिशा के बोलांगिर, नवरंगपुर,रायगड़ा, महाराष्ट्र के गोंदिया, मध्यप्रदेश के मंडला व डिंडौरी, केरल के वायनाड व कुन्नूर, झारखंड के गिरिडीह, गुमला व लोहरदगा और छत्तीसगढ़ के बस्तर, धमतरी, कोंडागांव, महासमुंद, राजनांदगांव, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई, मुंगेली और कबीरधाम ज़िले को रखा गया है.
केंद्र सरकार सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में कमी को पूरा करने के लिए विशेष केंद्रीय सहायता के तहत 'सर्वाधिक माओवाद प्रभावित' ज़िलों और 'चिंताजनक ज़िलों' को क्रमशः 30 करोड़ रुपये और 10 करोड़ रुपये की वित्तीय मदद देती है.
इसके साथ-साथ इन ज़िलों के लिए विशेष परियोजनाएं भी चलाई जाती हैं.
राज्य के एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी कहते हैं, "पिछले कुछ सालों के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि छत्तीसगढ़ में माओवादियों की ओर से होने वाली हिंसा में भले कमी आई है लेकिन माओवाद प्रभावित इलाकों में कहीं कोई कमी नहीं आई है."
"केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी माओवाद प्रभावित ज़िलों की सूची से बस्तर या किसी अन्य ज़िले को नहीं हटाया है. मामला केवल माओवाद का नहीं है. इन ज़िलों को माओवाद प्रभावित होने के नाम पर जो अतिरिक्त रक़म मिलती है, यह उससे भी जुड़ा है."
पुलिस अधिकारी का दावा है कि अगर किसी ज़िले में माओवादी गतिविधियां कम भी होती हैं, तो भी स्थानीय स्तर पर कोशिश होती है कि उसे माओवाद प्रभावित ज़िलों में शामिल रखा जाए, जिससे उसे केंद्रीय सहायता मिलती रहे.

असल में माओवाद प्रभावित ज़िलों को विकास के लिए हर साल केंद्र सरकार से, अलग-अलग मदों में अतिरिक्त रक़म मिलती है.
केंद्र सरकार के दस्तावेज़ बताते हैं कि देश के माओवाद प्रभावित ज़िलों को अकेले सुरक्षा संबंधी व्यय योजना में पिछले 10 सालों में 3,260.37 करोड़ रुपये दिए गए हैं.
इसी तरह सर्वाधिक माओवाद प्रभावित ज़िलों के लिए विशेष सहायता योजना में 2017 से अब तक इन ज़िलों को 3,563 करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं.
विशेष इंफ़्रास्ट्रक्चर योजना में पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के लिए इन ज़िलों को 1,741 करोड़ रुपये दिए गए हैं.
इन ज़िलों से माओवाद को ख़त्म करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों को केंद्र सरकार ने पिछले 10 सालों में 1,120.32 करोड़ रुपये की सहायता दी है.
इसी तरह सिविक एक्शन प्रोग्राम में पिछले 10 सालों में इन ज़िलों के लिए 196.23 करोड़ रुपये दिए गए हैं.
इसके अलावा इन ज़िलों में 17,589 किलोमीटर सड़कों को भी मंजूरी दी गई है.
इन योजनाओं के प्रचार-प्रसार पर सरकार ने 50 करोड़ से अधिक की रक़म खर्च की गई है.
विपक्षी दल कांग्रेस के प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने बीबीसी से कहा, "हमारी सरकार के कार्यकाल में माओवादी हिंसा पर पूरी तरह से लगाम था. हमारी राज्य सरकार ने अपनी तरफ़ से बस्तर संभाग के इलाके में विकास के लिए खुले हाथ से राशि आवंटित की."
"पांच साल सरकार में रहते हुए कांग्रेस पार्टी ने बस्तर में जिस तरीके से सुरक्षाबलों के कैंप स्थापित किए, आज उन्हीं कैंपों के कारण माओवादियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन चला पाना संभव हो पाया है."
शुक्ला ने कहा, "रही बात बस्तर ज़िले के नक्सल मुक्त होने की, तो इस तरह की फर्ज़ी घोषणा, बेहद ओछी है और भाजपा को इससे बाज आना चाहिए."
माओवाद के ख़िलाफ़ अभियानदिसंबर 2023 में जब छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार आई तो राज्य के गृहमंत्री विजय शर्मा ने माओवादियों के साथ शांति वार्ता की पेशकश की थी.
वे अपने अधिकांश सार्वजनिक संबोधनों में शांति वार्ता की बात दुहराते रहे लेकिन दूसरी तरफ़ राज्य में सुरक्षाबलों ने माओवादियों के ख़िलाफ़ अपना ऑपरेशन भी धीरे-धीरे तेज़ कर दिया.
आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में 2020 से 2023 के चार सालों में 141 माओवादी मारे गये थे. लेकिन राज्य में भाजपा की सत्ता आने के बाद अकेले 2024 में सुरक्षाबलों ने 223 माओवादियों को मुठभेड़ में मारने का दावा किया.
इसके अलावा बस्तर के इलाके में सुरक्षाबलों के 28 कैंप भी खोले गए.
साल 2025 के शुरू से ही बस्तर में माओवादियों के ख़िलाफ़ अभियान में तेज़ी आई है.
मारे गए नक्सलियों में सीपीआई (माओवादी) के महासचिव उर्फ़ बसवराजू नाम भी शामिल है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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