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नेपाल में हिंसक विद्रोह भड़काने वाले ये हैं पांच कारण

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PRABIN RANABHAT/AFP via Getty Images विरोध प्रदर्शनों के दौरान आगजनी की भी कई घटनाएं हुईं

नेपाल में इस हफ़्ते हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए.

इस विरोध प्रदर्शन में न केवल राजधानी काठमांडू की ज़्यादातर ऐतिहासिक और आधुनिक इमारतों को आग लगा दी गई बल्कि इसके कारण प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को अपना पद भी छोड़ना पड़ा.

17 साल पहले 28 मई 2008 को नेपाल एक गणतांत्रिक देश बना था.

हिमालय से सटे इस राष्ट्र में अचानक भड़के इस विरोध प्रदर्शन की पाँच मुख्य वजहें बताई जा रही हैं.

1. सोशल मीडिया पर प्रतिबंध image AFP via Getty Images जेन ज़ी' प्रोटेस्ट शुरू में सोशल मीडिया साइट्स पर पाबंदी लगाने के विरोध में शुरू हुआ था.

नेपाल के मौजूदा संकट के लिए कुछ विश्लेषक ओली प्रशासन के चार सितंबर को दिए गए आदेश को ज़िम्मेदार मान रहे हैं. इस आदेश में उन्होंने फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, ट्विटर, यूट्यूब और एक्स सहित 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगा दिया था.

सरकार का कहना था कि बार-बार चेतावनी देने के बावजूद इन टेक कंपनियों ने नेपाल के क़ानूनों और नियमों का पालन नहीं किया.

सोशल मीडिया पर इन प्रतिबंधों के कारण उन लाखों नेपाली यूज़र्स को असुविधा हुई, जो इनका प्रयोग ज़रूरी जानकारी हासिल करने और कम्युनिकेशन के लिए करते थे.

डेटा रिपोर्ट-ग्लोबल डिजिटल इनसाइट्स के अनुसार नेपाल के करीब 55 प्रतिशत (1.6 करोड़ से ज़्यादा) लोगों के पास इंटरनेट की सुविधा मौजूद है और इसमें से 50 प्रतिशत लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं.

चार सितंबर को प्रतिबंध के बाद नेपाल के लोगों की पहुंच केवल वाइबर और टिकटॉक जैसे ऐप्स तक सीमित हो गई. इसके कारण कई लोगों को चैट करने के लिए फेसबुक मैसेंजर या व्हाट्सएप से अचानक वाइबर और अन्य माध्यमों को डाउनलोड करना पड़ा.

नेपाल सरकार ने पहले टिकटॉक पर भी प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन नियमों का पालन करने पर सहमति जताने के बाद फिर से इसे अनुमति दी गई थी.

इससे पहले, नेपाल में सोशल मीडिया यूज़र्स के बीच 'नेपो किड्स' नामक एक सोशल मीडिया कैंपेन ट्रेंड कर रहा था. इसमें उन बच्चों को निशाना बनाया गया था जो भाई-भतीजावाद और राजनीतिक संबंधों का लाभ उठा रहे थे.

आठ सितंबर को जब करीब 14 से 28 साल की आयु वर्ग के 'जेन ज़ी' पहले दिन शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतरे, तो उनकी मांगों में अन्य चिंताएं भी शामिल थीं.

2. भ्रष्टाचार के मामले image Sanjit Pariyar/NurPhoto via Getty Images नेपाल में युवाओं ने अपने प्रदर्शन में भ्रष्टाचार के मुद्दे भी उठाए

इस विरोध प्रदर्शन में जेन ज़ी प्रदर्शनकारियों ने 'भ्रष्टाचार ख़त्म करो' और 'सोशल मीडिया नहीं, भ्रष्टाचार पर प्रतिबंध लगाओ' लिखे हुए प्लेकार्ड भी दिखाए.

इसके बाद जैसे-जैसे प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ती गई, उनमें से कुछ नेपाल के मंत्रालयों के मुख्यालय, सिंह दरबार और संसद परिसर की दीवारों पर चढ़ने लगे, जिसके बाद पुलिस कार्रवाई शुरू हो गई.

पुलिस के दागे गए आंसू गैस के गोलों, रबड़ की गोलियों और फ़ायरिंग में देश भर में कई प्रदर्शनकारी मारे गए.

इसके अगले दिन 9 सितंबर को जो कुछ हुआ वो अब नेपाल के इतिहास में दर्ज हो गया है. इस दिन बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए और देखते ही देखते ये पूरे देश में फैल गया.

प्रदर्शनकारियों ने नेपाल के कई दिग्गज नेताओं को 'भ्रष्ट' बताते हुए उनके घरों पर हमला कर दिया और आग लगा दी.

हाल के महीनों में नेपाल भ्रष्टाचार और घोटालों के कई मामलों से हिल गया.

इनमें से कुछ घोटाले पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल सहित शीर्ष नेताओं से जुड़े थे, जो पतंजलि योगपीठ नेपाल के लिए भूमि अधिग्रहण मामले में फंसे हुए थे.

केपी शर्मा ओली और उनके कई सहयोगियों को गिरिबंधु चाय बागान भूमि गबन मामले में घसीटा गया, हालांकि उन्होंने इससे इनकार किया है और इस मामले को अभी तक आगे नहीं बढ़ाया गया था.

दो पूर्व मंत्रियों तोप बहादुर रायमाझी (सीपीएन-यूएमएल) और बाल कृष्ण खंड के अलावा एक दर्जन से ज़्यादा वरिष्ठ नौकरशाहों को पिछले साल एक और चौंकाने वाले घोटाले (अमेरिका में फ़र्ज़ी भूटानी शरणार्थियों की तस्करी) में दोषी पाए जाने पर एक अदालत ने जेल भेज दिया था.

इसी मामले में पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की पत्नी आरज़ू राणा देउबा का भी एक ऑडियो टेप सामने आया था. हालांकि उन्होंने मीडिया के सामने इस मामले में अपनी भूमिका से इनकार करते हुए खुद को निर्दोष बताया था. प्रदर्शनकारियों ने मंगलवार को इन पर भी बेरहमी से हमला किया था.

बर्लिन स्थित निगरानी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के सूचकांक में नेपाल एशिया और दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में शुमार है. 2024 में जारी इस सूचकांक के अनुसार नेपाल 180 देशों में 107वें स्थान पर था.

3. युवा छोड़ रहे नेपाल image Getty Images आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक़ रोज़ाना 2000 से अधिक युवा नेपाल छोड़ रहे हैं.

नेपाल की अर्थव्यवस्था में कोविड के बाद सुधार दिखने लगा है. पर्यटन क्षेत्र में बढ़ोतरी देखी जा रही है, लेकिन काम की तलाश में नेपाल के लोगों का विदेश जाना जारी है. इससे विदेश में रह रहे नेपाली कामगारों के पैसे भेजने का सिलसिला भी बढ़ा है.

एशियाई विकास बैंक के अनुसार, 2025 में अर्थव्यवस्था के चार प्रतिशत से अधिक की दर से बढ़ने का अनुमान है. हालांकि इस सप्ताह हुई राजनीतिक उथल-पुथल और तोड़फोड़ के कारण इस पर असर पड़ने की आशंका है.

नेपाल की एक बड़ी जनसंख्या कृषि, पर्वतारोहण और ट्रैकिंग जैसी पर्यटन गतिविधियों में काम कर रही है लेकिन यह स्थिति तेज़ी से बदल रही है. नेपाल के युवा बड़ी संख्या में बेहतर अवसर की तलाश में विदेश जा रहे हैं.

2021 की जनगणना के अनुसार, लगभग 30 लाख नेपाली विदेश में रहते हैं. लाखों नेपाली पड़ोसी देश भारत के छोटे-बड़े शहरों में रहकर काम करते हैं. दोनों देशों के बीच खुली सीमा है. इसके अलावा यह मध्य पूर्व, मलेशिया, दक्षिण कोरिया और जापान में काम करते हैं.

यूरोप नेपाली श्रमिकों के लिए एक नए केंद्र के रूप में उभरा है.

नेपाल से न केवल श्रमिक बल्कि हज़ारों छात्र भी बेहतर आर्थिक और शिक्षा के अवसरों और सुविधाओं की कमी के कारण ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका जा रहे हैं.

इसके कारण भले ही नेपाल की कई एकड़ कृषि भूमि अब बंजर पड़ी है लेकिन इससे देश को कहीं न कहीं फ़ायदा हो रहा है.

नेपाल के केंद्रीय बैंक के अनुसार, विदेश में रहने वाले नेपालियों ने मई से जून 2025 के बीच 176 अरब नेपाली रुपये अपने घर भेजे हैं और अनुमानों के अनुसार यह राशि बढ़ भी सकती है.

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4. युवाओं का मोहभंग image AFP via Getty Images प्रदर्शनकारियों और सेना दोनों ने भारी हिंसा के लिए 'अराजक तत्वों' को ज़िम्मेदार ठहराया है.

नेपाल में बहुत ज़्यादा उद्योग नहीं है और विदेशी निवेश आकर्षित करने का सरकारी प्रयास भी बहुत उत्साहजनक नहीं दिखाई दिया.

नेपाल की मौजूदा नौकरशाही में बड़े निवेशकों के लिए काम करना मुश्किल है.

राजनीतिक अस्थिरता के कारण देश के प्रमुख सरकारी पदों पर बार-बार बदलाव हो रहे हैं, ये निवेशकों के लिहाज से एक बेहतर स्थिति नहीं है.

देश में ज़्यादा सैलरी वाली नौकरियां देने वाले उद्योग कम हैं ऐसे में नेपाली युवा विदेश का रुख़ कर रहे हैं, जहां उन्हें बेहतर नौकरी और सैलरी मिले.

नेपाल के युवा पिछले दिनों पारंपरिक रोज़गार से अलग रूसी सेना में भर्ती होने तक चले गए थे.

नेपाल में उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त विश्वविद्यालय और शैक्षणिक संस्थान तो हैं लेकिन यहां हो रही राजनीति के कारण मध्यम वर्ग के छात्र सिडनी, वेलिंगटन या फिर लंदन जाने के लिए मजबूर हुए हैं.

जो युवा 'नेपो किड्स' नेपाल में रह गए हैं, वे पारंपरिक रूप से नए और पुराने राजनीतिक दलों में शामिल होते रहे हैं. ऐसे युवाओं को आकर्षक ठेकों या फिर सरकारी कार्यालयों में राजनीतिक नियुक्तियों के रूप में पदों से नवाजा गया है.

यही बात जेन ज़ी के सदस्यों को अच्छी नहीं लगी, जो अपने मोबाइल या कंप्यूटर स्क्रीन पर कहीं बेहतर और समृद्ध दुनिया की तस्वीरें देखते हुए बड़े हुए हैं.

5. बड़े पैमाने पर घुसपैठ image KATHMANDU MAHANAGARPALIKA बालेन शाह अभी महज 35 साल के हैं लेकिन नेपाल की राजनीति में अहम चेहरा बन चुके हैं

सोमवार को पुलिस की गोलीबारी में 19 लोगों के मारे जाने के तुरंत बाद ओली सरकार के प्रवक्ता पृथ्वी सुब्बा गुरुंग ने 'जेन ज़ी' के विरोध प्रदर्शन में हुई अराजकता और उसके बाद हुई हिंसा के लिए "निहित स्वार्थी समूहों द्वारा घुसपैठ" को ज़िम्मेदार ठहराया.

हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि किन समूहों ने इस विरोध प्रदर्शनों में घुसपैठ की. 'जेन ज़ी' के प्रदर्शनकारियों ने भी बीबीसी को बताया है कि उनके विरोध प्रदर्शनों को "घुसपैठियों" ने "हाईजैक" कर लिया है.

अगर जल्दी से एक फैक्ट फाइंडिंग कमीशन का गठन कर दिया जाए तो यह पता लगाया जा सकता है कि काठमांडू की प्रमुख इमारतों, आवासों और ऐतिहासिक महलों को भारी नुकसान पहुंचाने वाले इन विरोध प्रदर्शनों में किन लोगों ने घुसपैठ की थी.

नेपाल पिछली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तब सुर्खियों में आया था जब राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी और दुर्गा प्रसैन (विवादास्पद व्यवसायी) के नेतृत्व वाले समूह ने इस साल मार्च के अंत में काठमांडू में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए थे.

इसके कुछ हफ़्ते पहले ही अपदस्थ राजा ज्ञानेंद्र (मई 2008 में अपदस्थ) ने "देश में एकता और बदलाव" की सार्वजनिक अपील की थी.

हिंसक हो चुके इन विरोध प्रदर्शनों में कई लोग मारे गए. राजशाही समर्थक विरोध प्रदर्शन मानसून से ठीक पहले आपसी फूट की खबरों के बीच समाप्त हो गया.

इस हफ़्ते हुए 'जेन ज़ी' के विरोध प्रदर्शनों से ठीक पहले, प्रसैन और एक आरपीपी नेता ने सार्वजनिक रूप से संकेत दिया था कि वे विरोध प्रदर्शनों में शामिल होंगे.

इसके अलावा, 'जेन ज़ी' समूहों के पीछे काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह भी थे, जो अपनी बेबाक और अनडिप्लोमेटिक सोशल मीडिया पोस्ट के लिए मशहूर हैं.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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