कोटा का दशहरा मेला... नाम सुनते ही मन में रोशनी, भीड़ और आतिशबाजी की छवि उभर आती है। लेकिन इस बार यहाँ का नज़ारा और भी अनोखा होगा। मैदान में एक ऐसा रावण खड़ा किया जा रहा है, जिसे देखकर लोग दंग रह जाएँगे। 215 फीट ऊँचा, 12 टन वज़नी और लोहे से बना यह रावण अब तक का सबसे बड़ा पुतला होगा।
दशहरा मैदान में सुबह से रात तक हथौड़ों और वेल्डिंग की चिंगारियों की आवाज़ गूंजती रहती है। हरियाणा के अंबाला से आए तेजेंद्र चौहान और उनकी टीम पिछले चार महीनों से इस रावण को तराश रही है। चौहान मुस्कुराते हुए कहते हैं, "रावण की हड्डियों में 9500 किलो लोहा है। इतना लोहा तो किसी छोटे से पुल में भी नहीं लगता।"
रावण का सिर अपने आप में एक अजूबा है। मुख्य सिर 25 फीट ऊँचा है, बाकी नौ सिर 3×6 फीट के हैं। चेहरा फाइबर से ढाला गया है, जिसका वज़न 300 किलो है। इस बार मूंछें घनी और ऊपर की ओर मुड़ी हुई हैं - बिल्कुल किसी फिल्म के खलनायक जैसी।
मुकुट? यह तो एक अलग ही नज़ारा है। 60 फ़ीट ऊँचा, चार हिस्सों में बना और एलईडी लाइटों से जगमगाता हुआ। रात के अंधेरे में जब यह मुकुट जगमगाएगा, तो पूरा मैदान रोशनी से नहा उठेगा। रावण की तलवार 50 फ़ीट लंबी और उसके जूते 40 फ़ीट लंबे हैं। कुंभकरण और मेघनाथ भी पीछे नहीं रहेंगे - 60 फ़ीट ऊँचे पुतले, जिनके चेहरे 10 फ़ीट लंबे और वज़न 80 किलो है।
इतना बड़ा पुतला खड़ा करना आसान नहीं है। इसके लिए 6 फ़ीट गहरा और 25 फ़ीट चौड़ा आधार तैयार किया गया है। दो क्रेन, एक जेसीबी और सौ मज़दूरों की मदद से तीन घंटे में रावण खड़ा कर दिया जाएगा। मैदान में मौजूद एक मज़दूर कहता है, "इतना ऊँचा रावण हम पहली बार देख रहे हैं। जब इसे खड़ा किया जाएगा, तो लोग गर्दन उठाकर ही आसमान की ओर देख पाएँगे।"
और इस बार दहन का तरीका भी अलग होगा। अब न मशालें होंगी, न तीर- रिमोट से रावण का नाश होगा। पुतले में 20 जगहों पर सेंसर लगाए गए हैं। बटन दबाते ही सबसे पहले छत्र जलेगा, फिर मुकुट के हिस्से और फिर आतिशबाजी के धमाकों में पूरा शरीर जल उठेगा।
हालांकि, इस बार रावण हिलेगा नहीं। न तलवार घूमेगी, न आंखें हिलेंगी। लेकिन भव्यता इतनी होगी कि किसी को उसकी कमी महसूस ही नहीं होगी। रावण का चेहरा बनाने में एक महीना, उसके हिस्से तैयार करने में दो महीने लगे और फिर उन्हें दो ट्रकों में कोटा लाया गया। फाइबर ग्लास से बने चेहरों पर रेजिन केमिकल की एक परत चढ़ाई गई है ताकि उनकी मजबूती बनी रहे।
2 अक्टूबर की शाम को जब कोटा का आसमान रंग-बिरंगी रोशनियों से जगमगाएगा, तब यह विशाल रावण सिर्फ एक पुतला नहीं होगा। यह दशहरे की परंपरा, कारीगरों की मेहनत और कोटा के गौरव का प्रतीक होगा।
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